बस्ती

ढाई महीने से ज्यादा समय बीता नहीं मिली जनपद में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी

 

*ढाई महीने से ज्यादा समय बीता नहीं मिली जनपद में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी, तगादा से प्रधानों की बढ़ी सिरदर्दी* 

-मजदूरी न मिलने से मनरेगा मजदूरों के बुझ सकते हैं चुल्हे

-बिना भरपेट भोजन कैसे दौड़ेगा मजदूरों के हाथों से फावड़ा

       बस्ती संवाददाता- सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत गरीबों को सौ दिनों का रोजगार देने के लिए दावा करती है लेकिन मजदूरों को ढाई महीने से मजदूरी नहीं मिलने के कारण मनरेगा में कार्य करना मुश्किल हो गया है और मजदूरों के सामने रोटी – रोजी का संकट खड़ा हो गया है।

         प्राप्त समाचार के अनुसार – गांवों में रोजगार की गारंटी है लेकिन मजदूरी मिलने के समय की नहीं क्योंकि बीते ढाई महीनों से मनरेगा मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाया है । मनरेगा के तहत प्रखंडों में मजदूरों को रोजगार तो मिल रहा है लेकिन समय पर मजदूरी नहीं मिल रही है जिससे मजदूरों को अपने परिवार का भरण-पोषण करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जिसमे कारण मजदूरों की मनरेगा में रुचि कम होती दिख रही है और उनकी सक्रियता भी कम हो रही है । मजदूरों को बैंक और विकास खंड कार्यालय के कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं जो उनके लिए बहुत परेशानी का कारण बन रहा है । मजदूरों की मुख्य समस्या यह है कि राशन की दुकान से मिलने वाला राशन पूरे महीने के लिए पर्याप्त नहीं होता है जिससे उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करने में मुश्किल हो रही हैं। मनरेगा के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन की गारंटीशुदा मजदूरी का प्रावधान है और सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाता है जो मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करता है । अधिनियम 1948 के अनुसार समय पर भुगतान करना अनिवार्य है जो मजदूरों को उनके काम के लिए उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने में मदद करता है । यह अधिनियम मजदूरों के शोषण को रोकने और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था । मजदूरों के लिए शीघ्र भुगतान बहुत जरूरी है क्योंकि देर से भुगतान होने पर उनके सामने विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है । यह योजना न केवल उन्हें रोजगार प्रदान करती है बल्कि उनके परिवारों को भी सुरक्षा प्रदान करती है इस प्रकार मनरेगा दिहाड़ी मजदूरों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना है जो उन्हें रोजगार पारिश्रमिक और सुरक्षा प्रदान करती है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत मजदूरों को समय पर भुगतान करना अनिवार्य है लेकिन मजदूरों को ढाई महीने बाद भी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाना इस अधिनियम के उद्देश्यों के विपरीत है। मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं किया जाना इस अधिनियम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है।

Back to top button
error: Content is protected !!